श्री गणेशाय नमः
प्रायौगिक वास्तु का हमारे जीवन पर प्रभाव – कई बार वास्तु निरीक्षण के दौरान हमारे अनुभव में आया है कि भवन पूर्ण रूप से वास्तु सम्मत बनाया गया है,फिर भी उस भवन में आने के पश्चात भवन स्वामी किसी न किसी रूप से परेशान है।
आइए जानते है ईशान कोण (उत्तर+पूर्व) दिशा में आये प्रायौगिक वास्तु दोष कैसे बनते है–
उत्तर+पूर्व दिशा जल तत्व एवं वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करती है।यहाँ पूजास्थल सर्व श्रेष्ठ माना जाता है।
(1) पूजा स्थान में लाल या नारंगी रंग का होना ।
(2) पूजा स्थान में लाल बल्ब जलाना ।
(3) पूजा स्थान में अखण्ड ज्योति जलाना ।
यह सब अग्नि तत्व के कार्य कलाप है, उसी वजह से जलतत्व एवं अग्नि तत्व दोनों असन्तुलित हो जाते है, जिसके दुष्परिणाम से भवन स्वामी के जीवन मे समस्या देने लगते है ।
आइये जानते है क्या दुष्परिणाम होते है:-
(1) निर्णय शक्ति का कमजोर एवं अस्थिर हो जाना।
(2) भूलने की आदत होना।
(3) सदैव सिरदर्द बना रहना।
(4) घर की स्त्रियां बीमार रहने लगती है।
(5) आय के स्त्रोत बन्द होने लगते है।
इसी लिए कोई भी योजना बिना विशेषज्ञ के परामर्श से नही बनाए ।
सुश्री सिद्धेश्वरी भारद्वाज
हस्तरेखा, ज्योतिष,रत्न,एवं वास्तु सलाहकार
9425020347