बड़वानी 11 दिसम्बर 2021/ कवि प्रदीप जी के गीत भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। उत्कृष्ट भावनाओं को शब्दों में पिरोकर उन्होंने जीवंत कर दिया। उन गीतों को सुनना एक आध्यात्मिक अनुभूति से गुजरने की तरह हैं। ऐ मेरे वतन के लागों गीत को जितनी बार सुनो, उतनी बार वह द्रवित कर देता है। ये बातें शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बड़वानी के स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्षन प्रकोष्ठ द्वारा कवि प्रदीप की 23 वीं पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में डाॅ. मधुसूदन चैबे ने कहीं। यह आयोजन प्राचार्य डाॅ. एन. एल. गुप्ता के मार्गदर्षन में किया गया। कार्यकर्ता वर्षा मालवीया ने ऐ मेरे वतन के लागों गीत गाकर प्रदीप जी के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किये। उपस्थित सभी विद्यार्थियों ने हाथ जोड़कर प्रदीप जी की मेधा को नमन किया।
कार्यकर्ताओं प्रीति गुलवानिया, किरण वर्मा, राहुल मालवीया, अंकित काग, दीक्षा चैहान ने जानकारी दी कि कवि प्रदीप मध्यप्रदेष के बड़नगर में 6 फरवरी, 1915 को जन्मे थे और 83 वर्ष की सार्थक जिन्दगी जीते हुए 11 दिसम्बर, 1998 को दिवंगत हुये थे। उन्होंने 1700 के आसपास फिल्मी गीत और भजन लिखे। उनका वास्तविक नाम रामचन्द्र द्विवेदी था। उनके सभी गीत अर्थपूर्ण और सार्थक हैं। पिंजरे के पंछी रे, दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है, कितना बदल गया इंसान, आओ बच्चों तुम्हें दिखायें झांकी हिंदुस्तान की जैसे अनेक अमर गीत उनकी कलम से जन्मे हैं। उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
यह है ऐ मेरे वतन के लोगों गीत के जन्म की कहानी
कॅरियर काउंसलर डाॅ. मधुसूदन चैबे ने बताया कि दिल्ली के नेषनल स्टेडियम में 27 जनवरी, 1963 को भारत-चीन युद्ध में शहीद से हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक आयोजन होने वाला था। इसके लिए संगीतकार रामचंद्र ने कवि प्रदीप से गीत लिखने का आग्रह किया। एक दिन प्रदीप समुद्र किनारे टहल रहे थे तभी उनके मस्तिष्क में गीत की पहली पंक्ति और फिर पहला अंतरा बन गया। उन्होंने किसी से पेन मांगी तथा अपने सिगरेट के पैकेट को फाड़कर उलटा किया और उस पर वे पंक्तियां लिख लीं। घर आकर पूरा गीत तैयार किया। मूल गीत में सौ अंतरे हैं। रामचंद्र को गीत बहुत पसंद आया और उन्होंने उसमें से कुछ अंष चुन लिये। पहले यह गीत आषा भोंसले गाने वाली थी। प्रदीप के आग्रह पर लता दीदी को भी इसमें सम्मिलित किया और युगल रूप से गाने की योजना बनी। ऐन वक्त पर आषाजी की तबियत खराब हो गई और इस तरह यह गीत लता दीदी को गाने का अवसर मिला। इस गीत ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में मिली पराजय के अवसाद को दूर करने में योगदान दिया था।
संचालन कोमल सोनगड़े ने किया। आभार राहुल भंडोले ने व्यक्त किया। सहयोग राहुल सेन, राहुल वर्मा, नंदिनी अत्रे, नंदिनी मालवीया ने किया।
